अब इस आसमान तले भी दम घुठता है,
अब इस हंसी में , मुस्कान में रुदन निकलता है ,
ख़ामोशी मानो दिल में घर कर बैठी है,
हर लफ्ज़ मे चुभन है तकलीफ है ,
हाल कुछ यु है की अब असमान तले भी दम घुठता है !!!
मन करता है की आंखे मूंदे ही बैठे रहना था,
बीते पलों की याद की कशमश में ही खोये रहना था,
दर्पण भी झरोखे जैसा बन गया है केवल ऊपरी हंसी दिखाता है ,
हाल कुछ यु है की अब असमान तले भी दम घुठता है !!!
मन के आशियाने में अभी भी उन्ही का जिक्र है, उन्ही के घाव,
उन्ही का प्यार , उन्ही का दीदार,
फिर कैसे इस मन की गहरायी में जाकर मरहम लगाऊं,
आपके सिवा जहां पहुँच न पाता कोई है
हाल कुछ यु है की अब असमान तले भी दम घुठता है!!!!!!
मेरी हिम्मत, मेरी कमजोरी, मेरी मुश्किलें, मेरे किस्से,
कैसे तुम तक लफ्जों में पहुन्चाउन
मेरी मनोरम, मेरी ख्वाईशें,
किस ज़रिये तुम तक कहल्वऊँ
हाल कुछ यु है की अब असमान तले भी दम घुठता है!!!!!!
इस चेहरे की आबरू होती है सबको
पर दरारे न देख पाता कोई,
यह इस मोह का ही तो छलावा है,
जहा सब बंजारन होए
अब हाल कुछ ऐसा है की
रोते हर मुस्कान में, हर बात में , हर रात में,
क्यों की देने को सिर्फ घुटन ही रह गयी है,
इस आसमान के दरमियान में||